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Chaurasi/ 84 – Book Review

  • Author: Satya Vyas
  • Paperback: 160 pages
  • Publisher: Hind Yugm; First edition (19 October 2018)
  • Language: Hindi

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“त्रासदी यह है कि प्रेम हर मज़हब का अंग है जबकि इसे ख़ुद ही एक मज़हब होना था।”

‘चौरासी’ सत्य व्यास की चुहल भरी शैली में उनका तीसरा उपन्यास है। हँसी ठिठोली और नई हिंदी के रंगों की चाशनी से पगी एक प्रेम कहानी है चौरासी। इसमें प्रेम है, देश है, विद्रोह है, लाचारी है, मानवता पर उठे हाथ हैं, सोचने वाली बातें हैं, स्वार्थ है, राजनीति का क्रूर प्रहार है। कुल मिलाकर भारत देश की एक छवि है, उसका सत्य है जो यहां परोसा गया है।

1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी के निधन के पश्चात हुए दंगों का विवरण हमें इस पुस्तक में देखने को मिलता है। किस प्रकार अपने ही पड़ोसी और जान पहचान के लोग हमारे विरुद्ध खड़े होने पर उतारू हो गए, ये देखने को मिलता है। सिखों पर ढाए कहर का मर्मस्पर्शी विवरण पढ़कर हम भीतर तक सिहर उठते हैं। सिख मर्दों की अपनी जान और औरतों को ऊनी आबरू बचाने के लिए किए गए प्रयास और उन पर भी हावी हो रहे दो कौड़ी के दरिंदो की प्यास देखकर हृदय रोया। सिख समुदाय जो अपनी कर्मठता के लिए मशहूर है, उनकी बरसों की मेहनत पर हुए आतंक को पढ़कर मन रोया। ज़िंदा जलाया है, इंसानो को भी और इंसानियत को भी। वाकई आतंकवाद का कोई धर्म नही होता।

और इस कोलाहल में भी जो जीत जाता है – वह है प्रेम। विशुद्ध, खरा। सिर्फ़ प्रेम ही हर नफ़रत की ज्वाला के पार जा पाता है। वह नहीं डरता, और न ही ठहरता है – हिम्मत बाँध कर बस आगे बढ़ता है।

“प्रेम कोई प्रमेय नहीं जो निश्चित साँचे में ही सिद्ध होता है। प्रेम अपरिमेय है।”


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